आमुख 


   तथ्यों के ज्ञान एवं बुद्धि के विकास के अतिरिक्त शिक्षा का उद्‌देश्य मन आवेग और संवेग पर संतुलित नियंत्रण तथा सुनिर्णय की क्षमता,संकल्प शक्ति,इच्छाशक्ति,ध्यान,सजकता,जागरूकताहोश और विवेक का विकास है|
 ईश्‍वर भक्ति,गुणों के अभ्यास तथा संतुलित परहित के साथ साथ पुण्यों का संकलन प्रतिभा से अधिक महत्वपूर्ण है|प्रस्तुत पुस्तिका जीवन यज्ञ के सम्बन्ध में मात्र बोध पुस्तिका है|निहित सूत्रों एवं निर्णयों को स्वयं के ज्ञान तथा तर्क से सकारात्मक द्रष्टिकोण के साथ विवेचित एवं व्याख्यायित कर सत्य को प्राप्त करना है|
   संतुलित आर्थिक विकास (अर्थ-धन) जीवन की प्रथम आवश्यकता है |जब तक सम्पूर्ण जगत में एक भी नर-नारी आर्थिक कामिक(Sex) तथा अस्वस्थता(शारीरिक-मानसिक) के संतुलन से ग्रस्त है तब तक अन्य की भी परमात्म साधना तथा जीवन मुक्ति असम्भव है|
      धरती को नारी एवं पशु-पक्षी उत्पीड़न रहित बनाने  तथा सन्तुलित भौतिक एवं आध्यात्मिक समाजवाद हेतु प्रस्तुत समाधान,निर्णयों एवं निदान पर आचरण करने एवं करवाने की आवश्यकता हैमानव सेवा एवं जीव सेवा सर्वोत्तम पूजा है|

      किसी भी प्रकार के शारीरिक या मानसिक भ्रष्ट आचरण एवं पापों को किये बिना संतुलित धनी बनने,स्वस्थ रहने,आध्यात्मिक बनने एवं धरती पर मुक्तावस्था को जानने,सृष्टि पर्यन्त तक वंश के चलने की प्रक्रिया से अवगत होने तथा निर्वाण की प्राप्ति आदि में जीवन की सात्विकता भंग न हो ऐसी  परिस्थितियाँ एवं आचार संहिता विचारणीय है ताकि मानवता ईश्‍वर से अनुगमित हो सके तथा प्रत्येक को परम चेतना महानिर्वाण प्रदान कर सकेईश्‍वर से यही कामना है कि लिखित संकेत लाभप्रद सिद्ध हों|
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 ईश्‍वर सर्वव्यापक है सर्वोच्च सत्ता की उपस्थिति वर्तमान व भविष्य काल में मानव समाज को विवेक ,सुख, समृद्धि व शान्ति से रहित नहीं ही होने देगी |जनसंख्या वृद्धि व विपरीत परम्परायें तथा रीति -रिवाज ही संसार के शारीरिक,मानसिक व आर्थिक,नैतिक तथा आध्यात्मिक असंतुलन का निमित्त हैं|जीवन दर्शन असत्य से सत्य बंधन से मोक्ष तथा दुःख से सुख की ओर चलने का अनवरत क्रम है|निरंतर ध्यान,सजगता तथा अभ्यास ही प्रत्येक व्यक्ति की परिस्थितियों में प्रतिक्षण वांक्षित संतुलन बिन्दु की प्राप्ति में तथा जीवन सत्य को गहराई से अनुभव करने में सहायक हो सकता है |मुक्ति या मोक्ष भौतिक आध्यात्मिक संतुलन से ही संभव है |विकसित मस्तिष्क ही बदलती परिस्थितियों में पाप-पुण्य ,धर्म-अधर्म का निर्णायक है |मानव सभ्यता यदि निर्देशित परिस्थितियों तथा नियमों को अपना ले तो जीवन क्षेत्र में उठने वाले असंख्य दुःखों तथा विवादों का अंत हो जाये , स्वस्थ परिस्थितियाँ तथा प्रथायें व्यक्ति को स्वस्थता समानता ,तथा शान्ति प्रदान करती है |एक संतानीय व्यवस्था,नारी उत्पीड़न ,आर्थिक असमानता ,पुत्री को पर ग्रह भेजने से उत्पन्न मानसिक क्लेश तथा जीवन में व्याप्त असंतुलन के अन्य अनगिनत कारणों को ही नहीं खतम करती है बल्कि सृष्टि पर्यन्त तक वंश क्रम की प्रक्रिया को भी मजबूत करती है|

     अंतहीन काल तक पुत्र-पौत्रों को वंशजों की जानकारी होनी ही चाहिये |परिवार व्यवस्था में बदलाव समय की अवश्यकता है |नामुमकिन या असंभव कहकर सत्य को नकारने तथा विपरीत तर्क जुटाने में व्यक्ति स्वतंत्र है |कर्मयोग के अनुसार कर्मों का फल भी निष्चित है |विश्व -समाज में फैले अभावों तथा दुःखों  से करुणा हमारे स्नायुओं को अशांत कर दुःखी तथा रोगी न बनाये ऐसा असंभव है |जन-जन का सुख ही हमें पीड़ा रहित तथा प्रत्येक को समान स्वतंत्रता व समान सुख प्रदान कर सकता है |
अतः पहले से ही सजग रहे अन्यथा गरीबी,बेबसी ,दीनता,लाचारी एवं शोषण के परिणाम प्रकृति तथा वायुमंडल में व्याप्त चीत्कार ,क्रंदन तथा असंतुलन हमारी आत्मा तथा मस्तिष्क को सब कुछ होते हुए भी खालीपन,व्याकुलता ,भय व पीड़ा का अनुभव कराते रहेंगे | प्रायश्‍चित हल नहीं है |ईश्वर भावनाओं की पराकाष्ठा से विश्व जन -मानस  को ओत-प्रोत कर दें |धर्म सभी का एक है |परिस्थितियों से अवगत कराने का दुष्कर कार्य भी ईश्‍वर कृपा से अवश्य पूर्ण होगा|वैचारिक क्रांति से पूर्ण सफल विवेक पूर्ण निर्णयों के बिना विश्व में दीन-हीन अवस्था में जीवन यापन कर रही आधे से अधिक जनसंख्या की मुक्ति असंभव है |
    जन्म से मृत्यु पर्यन्त मानव मुक्तावस्था प्रतिक्षण भोगता रहे ऐसी ईश्वर से कामना है |किसी भी वर्ग सम्प्रदाय द्वारा  विवेक का प्रयोग न कर विश्व    भूमि को जनसंख्या के अतिरिक्त बोझ से त्रस्त करना भी क्षमा के योग्य है |      वेद,उपनिषद, ब्राह्मण ग्रन्थ,आरण्यक ग्रन्थ,वेद ,पुराण ,स्मृति ग्रन्थ, बौद्ध ,जैन ,लौकिक साहित्य,रामायण,
महाभारत,संस्कृत, नाट्य ,व गद्य साहित्य ,प्राचीन अन्य धर्म ,षडदर्शन ,भगवत गीता, ओशो महत्वपूर्ण हैं|अज्ञानता को गणित ,वैज्ञानिक आधारों एवं आविष्कारों की आवश्यकता है |मतभेदों के निदान एवं विश्व प्रगति में अब और विलम्ब नहीं है|जरूरत परिवार व्यवस्था में बदलाव के तत्व ज्ञान की है |जीवन यज्ञ और ईश्‍वरीय सत्ता अनन्त है |जीवन की इस जटिलता के प्रश्न और भी जटिल हैं |सम्पूर्ण आयु में किन-किन स्थानों एवं पहलुओं पर समाज धन का अपव्यय द्रष्टिकोण को आधार बना कर करता है ,उन आधारों एवं कारणों को निज आर्थिक प्रगति ,आत्म शान्ति,परहित एवं सर्वहित -हितार्थ परम्पराओं एवं आस्थाओं में परिवर्तन स्वस्थ दृष्टिकोणों एवं सामयिक तर्कों के आधार पर करें |
पानी केरा बुद बुदा असमानुस की जाति, एक दिन छिप जाएगा, ज्यों तारा प्रभात | 
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई तमाम उपधर्म और हज़ारों जातियां, स्वेत, अस्वेत और जातियों की आपसी घृणा, परिणाम में अब तक करोड़ों की मृत्यु, उत्पीड़न, खरबों का देशों का रक्षा बजट का अपव्यय | क्या दुनिया ने शिक्षा पर अरबों खर्च कर यही विकास पाया है? अर्ध विकसित देश गरीबी से जूझ रहे हैं | ईश्वर के नुमाइंदे जानते थे की सभी मानव (ह्यूमन )हैं फिर भी कोई आकांक्षा भूलवश धर्मों और जातियों में बाटने की गलती उनसे करा गयी | दुनिया रहने तक ऊपर वाले की नज़र में वे गुनहगार ही बने रहेंगे | ईश्वर (अस्तित्व) उन्हें क्षमा करे |

       फिर भी लिखित सूत्रों में पाठकगण विपरीत चिंतन की अवस्था में पत्र व्यवहार के अधिकारी हैं|पुनः व्यवहारिकता से पूर्ण बौद्धिक निर्णय (धर्म)शक्ति ईश्वर प्रत्येक नर-नारी को प्रदान करें |उद्‌देश्य यही है कि सूत्र 11-12 को अपना कर प्रत्येक जन सर्वप्रकारेण सुखी हो भौतिक तथा आध्यात्मिक उद्धार को प्राप्त हो |अतः विश्व -भूमि पर चलते -फिरते 6 अरब मन्दिरों ,मस्जिदों ,गिरजाघरों एवं अन्य की सुरक्षा तथा देखभाल  क्रांति स्तर पर करने का दायित्व सभी का है|
ईश्‍वर सभी की सुनिर्णय जन्य संतुलित इच्छाओं एवं कामनाओं को पूर्ण करें ,पोषण प्रदान करें ,विकसित मस्तिष्क दें,सुनिर्णय शक्ति दें ताकि धर्म सर्वत्र प्रतिष्ठा को प्राप्त हो |
अस्तित्व से यही प्रार्थना है कि आने वाली पीढ़ी समस्याओं,विवादों ,उदासी एवं निराशा से मुक्त हो|

      "मानव धर्म का तात्पर्य जीवनचर्या की वह विधि जो प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक रूप से निरोग ,मानसिक रूप से विकसित होने,आर्थिक विकास , आध्यात्मिक विकास ,राजनैतिक एवं सर्वांगीण विकास में सहायक हो सके|"

सूत्र 1 -प्रातः दोपहर व सांय के आहार में नियत समय में घंटे-डेढ़ घंटे से अधिक का विलम्ब न करें |एक आहार से दूसरे आहार के मध्य कम तम 3 से 4 घंटे का अंतर रखें | भोजन का क्रम हल्का,भारी,भारी व हल्का रखें|


सूत्र 2-24 घंटे में लगभग 3-4 ली० जल का सेवन व भोजन चबा-चबाकर व जल भोजन के आधा घंटे पहले व अंत में न पियेंभोजन के मध्य जल ग्रहण पर आई डकार पर नहीं ,पुनः डकार आने पर खाना-खाना रोक दें या पेट भरा लगने के कुछ पहले |भोजन के मध्य थोड़ा जल या मट्ठा  अमृत तुल्य व भोजन के लगभग 40 मिनट बाद बलदायक है |
नोट :उदर रोगी,स्वास्थ्य एवं दीर्घायु के इच्छित तथा स्थूल शरीर वाले या जिन्हे स्थूलता (मोटापा) की शुरुआत या भय हो ,यथा बैठकर कार्य करने वाले ,भोजन के प्रारम्भ में एक गिलास जल या सूप अथवा फलों कि सलाद लेने के बाद भोजन प्रारम्भ करें |डकार आने पर खाना-खाना रोक दें या पेट भरा लगने से कुछ पहले |जहां तक सम्भव हो पीने हेतु गुन गुने जल का प्रयोग करें|

सूत्र 3-उम्र को 8 से भाग कर जितनी संख्या आये ,उतने ग्राम या कोठानुसार त्रिफला चूर्ण (घर का बना हुआ) सदैव सोते समय या सुबह शाम लेते रहें या हरीतिकी(हरड़)चूर्ण का सेवन करें |सेवन विधि एवं मात्रा हेतु वैद्य से परामर्श करें अथवा रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि  हेतु 2 से 5 च० घृतकुमारी (एलोवीरा)नित्य लें ,उदर विकार एवं कब्ज की स्थिति में घृतकुमारी रस में सत ईसबगोल व आमला रस डालकर वैद्य से परामर्श कर प्रयोग करें|
नोट-त्रिफला व हरण के स्वाद के लिये 1/2 या 1/4 भाग पिसी शक्कर मिला लें या कुछ मात्रा काला नमक अथवा शहद में चूर्ण डालकर रख लें|
नोट-सफेद नमक में छोटी हरड़ को भूनकर,फिर इमाम दस्ते में हरड़ को कूटकर व छानकर एवं मिक्सी में पीसने के बाद हरड़ चूर्ण आसानी से बन जाता है|

सूत्र 4 -हर 6 माह पर किसी योग्य चिकित्सक से अपनी आँखों की जाँच करायें तथा वर्ष में एक दो बार कीड़े(Worms) की दवा वैद्य से परामर्श कर अवश्य लें |

सूत्र 5-शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिये शौच प्रातः -सांय एवं दंतमंजन प्रातः एवं सोते समय तथा कुछ समय  प्रातः-सांय खेल ,व्यायाम,रस्सी कूदना,नृत्य,योग,ध्यान(Meditation),नासाग्र ध्यान, प्राणायाम(ओम ध्वनि,भस्त्रिका,कपालभाति, वाह्यय प्राणायाम,अग्निसार क्रिया ,अनुलोम विलोम ,भ्रामरी ,ओम उचारण ),सुदर्शन क्रिया ,संतुलित मौन की शिक्षा एवं अभ्यास ,घर में नंगे पैर टहलना, खुली हवा में सोना ,नित्य मच्छरदानी का प्रयोग, व्रत, उपवास एवं इंटरमिटेंट फास्टिंग(Intermittent fasting), सोने से पहले नाभि में कुछ बूँद तेल डालना, कुछ मिनट प्रातः धूप में बैठना, प्रत्येकआहार के पहले भरपूर मात्रा में सलाद के सेवन, ७० - ८० प्रतिशत क्षारीय (Alkaline) को प्राथमिकता आदि पर विचार करें,क्षारीय alkaline RO water (जल) ,सूर्य जल चिकित्सा या सन चार्ज्ड वॉटर (सूरज की किरणों से तैयार किया गया पानी) का प्रयोग करें |असाध्य रोगों से मुक्ति हेतु गोधन में शहद मिला कर गरम पानी के साथ खाली पेट सेवन लाभ प्रद है |
नोट - कब्ज़ की स्थिति में एक चम्मच हरड़ चूर्ण व डेढ़ चम्मच इसबगोल, कोठा अनुसार व उपरोक्त सभी नियम वैद्य से परामर्श अनुसार ही लें | तथा सामाजिक व्यवहार व लेन-देन हेतु स्थानीय भाषा में न्यूनतम गणित ,हिन्दी,अंग्रेजी का ज्ञान  कराकर स्वाध्याय की प्रेरणा परिवार के प्रत्येक स्‍त्री-पुरुष को दें तथा अच्छा स्वास्थ्य ,सामाजिक ,अध्यात्मिक,राजनीतिक साहित्य उपलब्ध करायें |

सूत्र 6सुःख-दुःख मानसिक दृष्टिकोण है |मेहनत कर भौतिक व आध्यात्मिक संतुलन जीवन में कायम करें|आर्थिक विकास हेतु परिवार का प्रत्येक सदस्य आठ से दस घंटे जीविकोपार्जन में व्यस्त रहने का प्रयास करें|महिलाओं को योग्यतानुसार ग्रह कुटीर उद्योग,व्यापार ,निजी व सरकारी सेवा कार्यों में तथा बच्चों को भी अंशकालिक कार्य में लगायें ताकि धनोपार्जन का महत्व समझें,व्यस्त भी रहें|



सूत्र 7-आध्यात्मिक व संतुलित जीवन के विकास हेतु सद् साहित्य का पठन-पाठन व गुणों के विकास हेतु आवश्यकतानुसार प्रत्येक गुण का अभ्यास प्रातः सायं कुछ समय ईश्वर नाम के साथ माला पर जपना व खाली समय में ध्यान व स्मरण करना ताकि प्रत्येक गुण से चेतना पूर्णतः अभ्यस्त हो जाये तथा आवश्यकता पर स्मरण हो आवे|गुणों का यह अभ्यास अचेतन व अवचेतन मस्तिष्क में सुरक्षित हो जन्मान्तरों में सकारात्मक फलों को प्रदान करने वाला है|



"मंत्र तथा प्रतिज्ञाएँ"

1 . हे ईश्‍वर-आलस्य नहीं करूँगा/करूँगी|
2 . हे ईश्‍वर-कामचोरी नहीं करूँगा/करूँगी|
3 . हे ईश्‍वर-पक्षपात नहीं करूँगा/करूँगी|
4 . हे ईश्‍वर-श्राद्ध तर्पण नहीं करूँगा/करूँगी|
5 . हे ईश्‍वर-धोखा नहीं खाऊँगा/खाऊँगी|
6 . हे ईश्‍वर-मानसिक नरक में नहीं रहूँगा/रहूँगी|
7 . हे ईश्‍वर -मानसिक दुख नहीं दूँगा/दूँगी|
8 . हे ईश्‍वर-विधुर नहीं रहूँगा|
9 . हे ईश्‍वरविधवा नहीं रहूँगी|
10 . हे ईश्‍वर अविवाहित नहीं रहूँगा /रहूँगी|
11 . हे ईश्‍वर - अनुशासनहीनता नहीं करूँगा/करूँगी|
12 . हे ईश्‍वरकुतर्क नहीं करूँगा/करूँगी|
13 . हे ईश्‍वर- खिल्ली नहीं उडाऊँगा/उडाऊँगी|
14 . हे ईश्‍वर-बुरा  नहीं करूँगा/करूँगी|
15 . हे ईश्‍वर -नशे का व्यापार  नहीं करूँगा/करूँगी|
16 . हे ईश्‍वर -प्रमाद नहीं करूँगा/करूँगी|
17 . हे ईश्‍वर -धोखा नहीं करूँगा/करूँगी| 
18 . हे ईश्‍वर -भाग्य नहीं मानूँगा/मानूँगी|
19 . हे ईश्‍वर - बेईमानी नहीं करूँगा/करूँगी|
20 . हे ईश्‍वर-ईर्ष्या  नहीं करूँगा/करूँगी|
21 . हे ईश्‍वर-कलह नहीं करूँगा/करूँगी|
22 . हे ईश्‍वर-चोरी नहीं करूँगा/करूँगी|
23 . हे ईश्‍वर-व्यंगात्मक हंसी-ठिठोली नहीं करूँगा/करूँगी|
24 . हे ईश्‍वर-पर्दा प्रथा  नहीं मानूँगा /मानूँगी|
25 . हे ईश्‍वर-नशा  नहीं करूँगा/करूँगी|
26 . हे ईश्‍वर-जाति-पाति नहीं मानूँगा/मानूँगी|
27 . हे ईश्‍वर -रंगभेद नहीं मानूँगा/मानूँगी|
28 . हे ईश्‍वर-धर्म भेद  नहीं मानूँगा/मानूँगी|
29 . हे ईश्‍वर-धर्मवाद नहीं मानूँगा/मानूँगी|
30 . हे ईश्‍वर-अन्याय नहीं करूँगा/करूँगी|
31 . हे ईश्‍वर-अति नहीं करूँगा/करूँगी|
32 . हे ईश्‍वर-घृणा  नहीं करूँगा/करूँगी|
33 . हे ईश्‍वर -हठ नहीं करूँगा/करूँगी|
34 . हे ईश्‍वर-घमण्ड नहीं करूँगा/करूँगी|
35 . हे ईश्‍वर -पाखंड नहीं करूँगा/करूँगी|
36 . हे ईश्‍वर-चिन्ता नहीं करूँगा/करूँगी|
37 . हे ईश्‍वर-निराश नहीं होऊँगा/होउँगी|
38 . हे ईश्‍वर-स्वार्थी नहीं बनूँगा/बनूँगी|
39 . हे ईश्‍वर-भयभीत नहीं होऊँगा/होउँगी|
40 . हे ईश्‍वर -हीनभावना नहीं रखूँगा/रखूँगी|
41 . हे ईश्‍वर -दुःखी नहीं होऊँगा/होउँगी|
42 . हे ईश्‍वर-लालच नहीं करूँगा/करूँगी|
43 . हे ईश्‍वर -गलत दान नहीं करूँगा/करूँगी|
44 . हे ईश्‍वर -क्रोध नहीं करूँगा/करूँगी|
45 . हे ईश्‍वर-मूर्ति पूजा नहीं चरित्र पूजा करूँगा/करूँगी|
46 . हे ईश्‍वर-गोपनीयता भंग नहीं करूँगा/करूँगी|
47 हे ईश्‍वर-कन्यादान  नहीं करूँगा/करूँगी|
48 . हे ईश्‍वर-अपव्ययी  नहीं बनूँगा/बनूँगी|
49. हे ईश्‍वर-तनाव नहीं रखूँगा/रखूँगी|
50 . हे ईश्‍वर-अंधविश्‍वासी नहीं बनूँगा/बनूँगी|
51 . हे ईश्‍वर -संकीर्ण नहीं बनूँगा/बनूँगी|
52 . हे ईश्‍वर -चालाकी  नहीं करूँगा/करूँगी|
53 . हे ईश्‍वर-झूठ नहीं बोलूँगा/बोलूँगी|
54 . हे ईश्‍वर-अशाँत नहीं होऊँगा/होउँगी|
55 . हे ईश्‍वर-भ्रमित नहीं होऊँगा/होउँगी|
56 . हे ईश्‍वर-दुर्बल नहीं बनूँगा/बनूँगी|
57. हे ईश्‍वर-आत्महत्या नहीं करूँगा/करूँगी|
58 . हे ईश्‍वर-नारी-भूण हत्या नहीं करूँगा/करूँगी|
59 . हे ईश्‍वर-पाप नहीं करूँगा/करूँगी|
60 . हे ईश्‍वर-कंजूस नहीं बनूँगा/बनूँगी|
62 . हे ईश्‍वर-संशय  नहीं करूँगा/करूँगी|
63 . हे ईश्‍वर-निन्दा नहीं करूँगा/करूँगी|
64 . हे ईश्‍वर -आश्रित नहीं होऊँगा/होउँगी|
65. हे ईश्‍वर-शोर नहीं करूँगा/करूँगी|
66 . हे ईश्‍वर-शोषण नहीं करूँगा/करूँगी|
67 . हे ईश्‍वर-फूल नहीं तोडूँगा/तोडूँगी|
68. हे ईश्‍वर -वैचारिक प्रदूषण नहीं करूँगा/करूँगी|
69 . हे ईश्‍वर-हत्या(लड़ाई-झगड़ा) नहीं करूँगा/करूँगी|
70 . हे ईश्‍वर-पर्यावरण प्रदूषण नहीं करूँगा/करूँगी|
71 . हे ईश्‍वर-कर्ताभाव नहीं रखूँगा/रखूँगी|
72 . हे ईश्‍वर -आश्रित नहीं होऊँगा/होउँगी|
73 . हे ईश्‍वर-कुरीति नहीं करूँगा/करूँगी|
74 . हे ईश्‍वर-शोषण नहीं करूँगा/करूँगी|
75 . हे ईश्‍वर-बुरी दृष्टि से किसी को नहीं देखूँगा/देखूँगी|
76 . हे ईश्‍वर-असत्य से सत्‍य की ओर ले चलो|
77 . हे ईश्‍वर-अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो|
78 . हे ईश्‍वर-मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो|
79 . हे ईश्‍वर-अशुभ से शुभ की ओर ले चलो|
80 . हे ईश्‍वर-विचार से निर्विचारता की ओर ले चलो|
81 . हे ईश्‍वर-विकार  से निर्विकारिकता की ओर ले चलो|
82 . हे ईश्‍वर-सदगुरु मित्र एवं साथी ढूंढूंगा/ढूँढूंगी|
83 . हे ईश्‍वर-कार्य ध्यान करूँगा/करूँगी|
84 . हे ईश्‍वर-सद इच्छा शक्ति दो|
85 . हे ईश्‍वर-सद मन दो|
86 . हे ईश्‍वर -सद संकल्प  शक्ति दो|
87 . हे ईश्‍वर-सद विचार दो|
88 . हे ईश्‍वर-सद-बुद्धि दो|
89 . हे ईश्‍वर- कृतग्य बनूँगा/बनूँगी|
90 . हे ईश्‍वर-सभ्य एवं शिष्ट बनूँगा/बनूँगी|
91 . हे ईश्‍वर-वर्तमान में प्रसन्न रहूँगा/रहूँगी|
92 . हे ईश्‍वर-भविष्य का नीति-निर्माण करूँगा/करूँगी|
93 . हे ईश्‍वर-अतीत का संतुलित अवलोकन करूँगा/करूँगी|
94 हे ईश्‍वर -संशय का निवारण करूँगा/करूँगी|
95 हे ईश्‍वर-स्वास्थ्य नियम मानूँगा/मानूँगी|
96 हे ईश्‍वर-जितेन्द्रिय बनूँगा/बनूँगी|
97 . हे ईश्‍वर-विवेकी  बनूँगा/बनूँगी|
98 . हे ईश्‍वर-प्रतिदिन प्राणायाम  करूँगा/करूँगी|
99 . हे ईश्‍वर-आती -जाती सांस पर ध्यान करूंगा/करूँगी|
100.हे ईश्‍वर-बड़ों के पैर छू कर आयुविद्या,यश एवं बल प्राप्त
 करूँगा/करूँगी|
101. हे ईश्‍वर-मन को जीत चुका हूँ/चुकी हूँ|
102.हे ईश्‍वर-कुशल बनूँगा/बनूँगी|
103. हे ईश्‍वर-उत्तरदायी  बनूँगा/बनूँगी|
104.हे ईश्‍वर-शिक्षित बनूँगा/बनूँगी|
105. हे ईश्‍वर-गुणी बनूँगा/बनूँगी|
106.हे ईश्‍वर-पुर्नजन्म मानूँगा/मानूँगी|
107.हे ईश्‍वर-आशीर्वाद(दुआएँ) मानूँगा/मानूँगी|
108.हे ईश्‍वर-दहेज विरोधी बनूँगा/बनूँगी|
109.हे ईश्‍वर-रक्त दान करूंगा/करूँगी|
110.हे ईश्‍वर-नेत्र दान करूंगा/करूँगी|
111.हे ईश्‍वर-सत-संगति करूँगा/करूँगी|
112.हे ईश्‍वर-एक पत्नी व्रती बनूँगा|
113.हे ईश्‍वर-एक पति व्रत बनूँगी|
114 .हे ईश्‍वर-स्थिर चित्त बनूँगा/बनूँगी|
115.हे ईश्‍वर-एक ही सन्तान करूँगा/करूँगी|
116.हे ईश्‍वर-आपके निराकार रूप को मानूँगा/मानूँगी|
117.हे ईश्‍वर-मध्यम मार्गी बनूँगा/बनूँगी|
118.हे ईश्‍वर- मितव्ययी बनूँगा /बनूँगी|
119.हे ईश्‍वर-प्रथम प्रणाम करुँगा/करूँगी|
120.हे ईश्‍वर-मन और शरीर- आज्ञा में आ चुका है|
121.हे ईश्‍वर-समय का सदुपयोग करुँगा/करूँगी|
122.हे ईश्‍वर-स्वदेशी खरीदूँगा/खरीदूँगी|
123.हे ईश्‍वर-सकारात्मक चिंतन करूँगा/करूँगी|
124.हे ईश्‍वर-संतुलित दया करूँगा/करूँगी|
125.हे ईश्‍वर-संतुलित न्याय करूँगा/करूँगी|
126.हे ईश्‍वर-संतुलित भला करूँगा/करूँगी|
127.हे ईश्‍वर-संतुलित मौन रहूँगा/रहूँगी|
128.हे ईश्‍वर-संतुलित क्षमा करूँगा/करूँगी|
129.हे ईश्‍वर-संतुलित परिग्रही बनूँगा/बनूँगी|
130.हे ईश्‍वर-संतुलित परोपकार करूँगा/करूँगी|
131.हे ईश्‍वर-मन के धोखों से बचूँगा/बचूँगी|
132.हे ईश्‍वर-सम्यक दृष्टि रखूँगा/रखूँगी|
133.हे ईश्‍वर-सभी की संतुलित परवाह करूँगा/करूँगी|
134.हे ईश्‍वर-संतुलित मर्यादित  बनूँगा/बनूँगी|
135.हे ईश्‍वर-संतुलित त्याग करूँगा/करूँगी|
136.हे ईश्‍वर-संतुलित चिन्ता करूँगा/करूँगी|
137.हे ईश्‍वर-संतुलित संतोषी बनूँगा/बनूँगी|
138.हे ईश्‍वर-संतुलित उत्साही  बनूँगा/बनूँगी|
139.हे ईश्‍वर-संतुलित मेहनती बनूँगा/बनूँगी|
140.हे ईश्‍वर-संतुलित भोग करूँगा/करूँगी|
141.हे ईश्‍वर-संतुलित चिंतन मनन  करूँगा/करूँगी|
142.हे ईश्‍वर-संतुलित झूठ  बोलूँगा/बोलूँगी|
143.हे ईश्‍वर-संतुलित सत्य बोलूँगा/बोलूँगी|
144.हे ईश्‍वर-संतुलित आहार करूँगा/करूँगी|
145.हे ईश्‍वर-संतुलित तप करूँगा/करूँगी|
146.हे ईश्‍वर-संतुलित वैरागी बनूँगा/बनूँगी|
147.हे ईश्‍वर-संतुलित संकोची बनूँगा/बनूँगी |
148.हे ईश्‍वर-संतुलित निर्णय करूँगा/करूँगी|
149.हे ईश्‍वर-संतुलित आचरण  करूँगा/करूँगी|
150.हे ईश्‍वर-संतुलित भावुक होऊँगा/होउँगी|
151.हे ईश्‍वरसंतुलित संघर्षशील बनूँगा/बनूँगी|
152.हे ईश्‍वर -संतुलित प्रतिदान  करूँगा/करूँगी|
153.हे ईश्‍वर-संतुलित मोह करूँगा/करूँगी|
154.हे ईश्‍वर-संतुलित अपेक्षा करूँगा/करूँगी|
155.हे ईश्‍वर-संतुलित व्यवहार करूँगा/करूँगी|
156.हे ईश्‍वर-संतुलित जागरूक रहूँगा/रहूँगी|
157.हे ईश्‍वर-संतुलित साधना (तप) करूँगा/करूँगी|
158.हे ईश्‍वर-संतुलित सहनशील बनूँगा/बनूँगी|
159.हे ईश्‍वर-संतुलित साहसी बनूँगा/बनूँगी|
160.हे ईश्‍वर-संतुलित आज्ञाकारी बनूँगा/बनूँगी|
161.हे ईश्‍वर-आत्मविश्‍वासी बनूँगा/बनूँगी|
162हे ईश्‍वर-अपना दीपक स्वयं बनूँगा/बनूँगी|
163.हे ईश्‍वर-टी०वी० पर अच्छे कार्यक्रम देखूंगा/देखूंगी|
164. हे ईश्‍वर -सहज एवं सरल जीवन जिऊँगा/जिऊँगी|
165.ईश्‍वर की कृपा से अच्छी बुद्धि,स्वास्थ्य,धनयशमौन एवं सुनिर्णयों की प्राप्ति हो चुकी है|
166.हे ईश्‍वर-आवेग और संवेग पर नियंत्रण रखूँगा/रखूँगी| 
167.हे ईश्‍वर-नदियों और पोखरों को स्वच्छ  रखूँगा/रखूँगी| 
168.हे ईश्‍वर-अच्छा शाशक/प्रशासक बनूँगा/बनूँगी| 
169.हे ईश्‍वर-अच्छा माता-पिता बनूँगा/बनूँगी|  
170.हे ईश्‍वर-ग्लोबल वार्मिंग हेतु चेतूंगा/चेतूँगी|
171.हे ईश्‍वर-प्रतिदिन ध्यान करूंगा/करूंगी|(Meditation(ध्यान),Awareness(ध्यान,होश,समझ)
172.हे ईश्‍वर-आत्मनुसंधान करूंगा/करूंगी|
173.हे ईश्‍वर-होशपूर्वक जीवन जियूँगा/जियूँगी 
174.हे ईश्‍वर-किन्नरों के उत्थान हेतु मदद करूंगा/करूंगी|
175.हे ईश्‍वर-होश,समझ,सुबुद्धि ,सुनिर्णय विवेक,प्राणायाम,योग, एवं ध्यान
(निर्विचार ) की साधना करूंगा/करूंगी|
176.हे ईश्‍वर-स्वयं से माफ़ी व् अन्यों को भी क्षमा करूंगा/करूंगी|
177. हे ईश्‍वर-स्वयं को धोखा नहीं  दूँगा/दूँगी। 
178 . हे ईश्‍वर-दूसरों (अन्यों) को धोखा नहीं दूँगा /दूँगी।
179.हे ईश्‍वर-होश को नहीं टूटने दूँगा /दूँगी |
180.हे ईश्‍वर-आत्मनिग्रह करूँगा / करूंगी |
181.हे ईश्‍वर-धार्मिक संकीर्णताओं से ऊपर उठकर मानव(इंसान ) बनूँगा / बनूँगी|
182.हे ईश्‍वर-सफल और सार्थक जीवन जीऊँगा / जीऊँगी|
183.हे ईश्‍वर-अन्यों की असुविधा का ध्यान रखूँगा / रखूँगी |
184.हे ईश्‍वर-आहार 80% alkaline (क्षारीय) एवं 20 % acidic (अम्लीय) लूँगा /लूँगी|
185.हे ईश्‍वर-पॉलीथीन का प्रयोग विश्व पर्यावरण हित में नहीं करूँगा / करूँगी| 
186.हे ईश्‍वर- सकारात्मक विचारों से सृष्टि को भरूँगा/ भरूँगी|
187.हे ईश्‍वर- संतुलित इच्छाओं एवं सुनिर्णयों की पूर्तिऔर प्राप्ति हो (हो चुकी है) |


नोट-सकारात्मक विचारों से सृष्टि को भरें|

सूत्र 8-घर के वातावरण शुद्धि  हेतु लोबान का प्रयोग करें। कपूर मिश्रित हवन सामग्री से आम की लकड़ी में प्रतिदिन सप्ताह,पाक्षिक या मासिक अग्निहोत्र करें|ईश्वर का ध्यान व गुणों का अभ्यास अग्नि जलने तक करें|

सूत्र 9-विवाह न्यायालय से करें व  कमतम  लगभग 10-20 बराती ले जाएँ|प्रेम विवाह मध्यम है|माता-पिता द्वारा तय किया गया विवाह सर्वोत्तम है|सेवा से दया,दया से करुणा,करुणा से त्याग,त्याग से मैत्री,मैत्री से प्रेम नैसर्गिकतः घटित होता है |अतः उपरोक्त अन्योनाश्रित हैं|सभी पक्ष दोनों ही आधारों पर वैज्ञानिक एवं विवेक पूर्ण सुनिर्णय लें |मैत्री घटित प्रेम से ही प्रतिभा पूर्ण संतानों की संभावना है|
        
      भोज,दिखावा,शान,जन्मदिन,मृत्युदिन,धार्मिक आयोजन,
त्योहारों,धार्मिक यात्रा पर खर्च होने वाला धन सामाजिक,अनाथ
 को गोद लेना,कन्या-पुरुष विवाह ,विधवा विवाह,परित्यक्त-परित्यक्ता विवाह, वृद्ध-विधवा व वृद्ध-विधुर औसत समान आयु विवाह, पोलियो, कुष्ठ उन्मूलन, टीकाकरण,अनाथ आश्रम,
अपाहिज आश्रम ,वृद्धआश्रम,विधवा आश्रम ,नारी निकेतन,तकनीकी शिक्षा,पुस्तकालय,ग्रामों में क्रीडा स्थलों हेतु ज़मीन व्यवस्था एवं
 क्रीडा संसाधनो की व्यवस्था  , कोढ़िओं हेतु टीन शेड व्यवस्था,धर्मशाला ,शौचालय निर्माण ,गरीब बच्चों,कमजोरभिखारी,भिक्षु, शुद्ध जल व्यवस्था ,संयुक्त अविवाहित कन्या-पुरुष एवं विवाहित स्त्री-पुरुष,प्रौढ़ ,बुजुर्ग वृद्ध स्त्री-पुरुष क्लब व स्वयं के बीमा तथा अपने आर्थिक विकास पर करें|वाहन चालकों को हेल्मेट के प्रयोग तथा ग्रामीण जनमानस को वृक्षा रोपण एवं छप्परों के स्थान पर टीन शेड या खपरैल  डालने व धूप में गमछा या हैट लगाकर श्रम हेतु प्रोत्साहन प्रदान करें |सतो गुण ,रजो गुण,तमो गुण ,सांख्य योग,भक्ति योग और कर्म योग का ज़ीवन में सामन्जस्य तथा पित्र ऋण , मातृ ऋण,ऋषि ऋण से मुक्ति के उपाय पर अवश्य ध्यान दें|नौका भ्रमण एवं पार उतरने वालों के लिये सरकार एवं व्यक्तिगत संस्थाएं नदियों के किनारे  लाइफ बेल्ट की व्यवस्था एवं मार्ग दुर्घटनाओं के बचाव हेतु डबल लेन एवं सन्तुलित गति पर विचार करें|

        माता -पिता , सद्‌गुरु, विद्वान,अतिथि,पति-पत्‍नी के लिये देवता एवं पत्‍नी-पति के लिये, पारिवारीय

जन ,असहाय दिग्भ्रमित मनुष्य आत्माएं तथा निरीह पशु-पक्षी ही ईश्वर के उपास्य देवालय है |इस क्रम में सुविधा एवं सामर्थ्य अनुसार प्रतिदिन पक्षियों(परिन्दों)को खंडा-दाना डालना,पानी रखना ,चीटियों हेतु चम्मच शक्कर चम्मच आटा,गाय एवं कुत्ते को रोटी (दिन में तीन बार या सामर्थ्य अनुसार)मछलियों व बन्दरों हेतु प्रतिदिन,सप्ताह में या पाक्षिक आटे  की गोलियाँ,चारा या रोटी डालना तथा सभी जलचर ,थलचर ,नभचर पशु-पक्षियों की संतुलित सुरक्षा एवं पोषण प्रत्येक नर-नारी का कर्तव्‍य है |
    पुण्यों ,नेकियों के अभाव में महत्वकांक्षाएँ एवं सुख पूर्ण एवं प्राप्त नहीं होते |पुण्यों,नेकियों को बढ़ाये बिना शारीरिक एवं मानसिक दुःखों एवं दुर्घटनाओं को कम नहीं किया जा सकता|उपरोक्त सभी पुण्यों और आनंद को बढ़ाने एवं समाधानों को पाने के आधार हैं|

    न्यायालयों में विडिओ कॉन्फ़्रेंसिंग के द्वारा उपस्थित एवं बयान करवाए जाने की सुविधा एवं व्यवस्था से ही देश के व्यापारी , नौकरी पेशा एवं किसान की उत्पीड़न से सुरक्षा एवं लाभ संभव है | देश की भी प्रगति इसी में है |

सूत्र 10-जुआँ,मदिरा,सिगरेट ,पुड़िया, माँस,ड्रग्स का सेवन नहीं तथा चाय का अति सेवन न करें|छोड़ने हेतु होम्योपैथी व संकल्प बल का प्रयोग करें|


सूत्र 11-एक ही सन्तान करें,उसी को पढ़ाकर संतुलित जीवन यापन हेतु शिक्षित व योग्य बनायें|ईश्वर एक ही को पूरी आयु देगा|


सूत्र 12-लड़की हो तो चिंता न करें|लड़की हो या लड़का जिसकी सम्पत्ति,पद,व्यवसाय,वेतन अधिक मात्रा में हो, कन्या व उसके माता -पिता लड़के व उसके माता-पिता के साथ जीवन यापन करें|कन्या की सम्पत्ति ,पद,व्यवसाय, वेतन अधिक हो तो लड़का व उसके माता-पिता लड़की व उसके माता-पिता के साथ जीवन यापन करें|मात्र एक ही सन्तान के सम्पूर्ण विकास के लिये संयुक्त परिवार दादा-दादी,नाना-नानी,माता-पिता इतने निकटस्थ रिश्तों की आवश्यकता है|

आने वाली पीढ़ियों को निर्देशित परिवार व्यवस्था की प्रक्रिया अपनाये जाने हेतु मार्गदर्शित करें ताकि पुत्र-पौत्रों को सृष्टि पर्यन्त तक पीढ़ियों पहले के वंशजों की दीर्घ वंशावलियों का ज्ञान रहे तथा प्रत्येक पीढ़ी में परिवार में धन में गुणात्मक वृद्धि से आर्थिक विकास संभव हो सके|





सूत्र 12 से सम्बंधित वंशावली

 राम 21 वर्ष                                                                                राम सीता
राम,सीता,राहुल पतनी  रीना तथा                               राहुल 21 वर्ष पहली पीढ़ी
रीना के माता-पिता
राम 42 वर्ष
श्याम-गयत्री|कुल संख्या 6 
राम,सीता,राहुल रीना,श्याम-गयत्री,                      कामनी 21 वर्ष दूसरी पीढ़ी
कामनी,पति सुरेन्द्र तथा सुरेन्द्र                         राम 63 वर्ष
के माता-पिता रोहित-
रेनु|कुल संख्या 10

सारिका 21 वर्ष तीसरी पीढ़ी                                  राम,सीता,राहुल,रीना,श्याम,गायत्री,
                                       कामनी,सुरेन्‍द्र,रोहित,रेनु  सारिका पति                                          दीपक तथा दीपक के माता-पिता,
                                         बीना,अनिल|
                                                  कुल संख्या -14

राम 84 वर्ष                                                                               


प्रीत कुमार 21 वर्ष                                 राम,सीता,राहुल,रीना,श्याम,
चौथी पीढ़ी                                        गायत्री,कामनी,सुरेन्‍द्र,रोहित,
राम 105 वर्ष                                   रेनु,सारिका,दीपक,बीना,अनिल,
                                             प्रीत कुमार,पत्‍नी चांदनी तथा 
                                          चाँदनी के माता-पिता,कुसुम-विजय|
                                                 कुल संख्या 18

राम,सीता,राहुल,रीना,श्याम,                           गुरूनाम पाँचवी पीढ़ी
गायत्री,कामनी,सुरेन्‍द्र,रोहित,                           राम 126 वर्ष
रेनु,सारिका,दीपक,बीना,अनिल,
प्रीत कुमार,चाँदनी,कुसुम,विजय,
गुरूनाम,पत्‍नी मालती,तथा मालती
के माता -पिता राजेश-अर्चना|
कुल संख्या 22


    एक संतानीय व्यवस्था तथा माता-पिता,दादा,-दादी,नाना-नानी संयुक्त परिवार की अवस्था में पाँचवी पीढ़ी में संख्या 22 होती है जबकि प्रथम पीढ़ी में बढ़े वंश में सभी संतानों के संतानें होने पर पाँचवी पीढ़ी में सांख्या 59049 होती है |
     (नौ)9 से कम तथा (एक)1 से  अधिक संतानो में यह गुणात्मक वृद्धि उपरोक्त औसत से बढ़कर पर 32, 3 पर 243,4 पर 1024,5 पर 3125,6 पर 7776,7 पर 16807 तथा 
संतानें होने पर पाँचवी पीढ़ी में संख्या 32768 होगी जो कि गरीबी,नारीउत्पीड़न,अशिक्षा,बेरोजगारी,भ्रष्टाचारअपराध,
आतंकवाद ,बाल शोषण आने वाली पीढियों के लिये आर्थिक संघर्ष तथा विभिन्न प्रकार के सामाजिक असंतुलन का कारण बनती है|इस बढ़ी जनसंख्या के कारण कुछ पीढ़ियों के बाद पूर्वजों और वंशजों का ज्ञान भी नहीं रहता है|एक संतानीय व्यवस्था में वंशजों के बारे में जानकारी का संकलन पूर्णतः सम्भव है|इस प्रकार चौथी और पाँचवी पीढ़ी में तथा आगे की पीढ़ियां बढ़ने पर परिवार में रह रहे सदस्यों की संख्या लगभग 12 या 14 ही रहेगी|
    यदि पहली से पाँचवी पीढ़ी तक पुत्र या पुत्री के सास-ससुर के माता-पिता को भी परिवार में शामिल कर लिया जाये तो पाँचवी पीढ़ी में संख्या 22 से 32 होगी|
    अतः 60 से 70 वर्ष तक उम्र को औसत मृत्यु दर उम्र मानने की दशा में परिवार के सदस्यों की संख्या लगभग 14 से 18 होगी|


      इस प्रकार म्रतक बुजुर्गों के चित्र,एल्बम(संग्रह)पृष्ठों से पृथक(अलग) होते रहेंगे तथा सृष्टि पर्यंत तक प्रत्येक आगामी पीढ़ी के चित्र संग्रह पृष्ठों में सम्मिलित एवं संकलित होते रहेंगे|
नोट-सूत्र 11-12 को ध्यान से पढ़ें,समझें एवं लागू करने का प्रयास करें|ताकि आर्थिक सम्रद्धिता संभव हो सके|

उदाहरण:10 एकड़ भूमि के वर पक्ष एवं 10 से कम एकड़ भूमि पद,आय एवं सम्पत्ति के कन्या पक्ष के होने की स्थिति में कन्या -पक्ष वर -पक्ष के परिवार के साथ रहे|स्थानीय विवाह होने पर कन्या पक्ष को भूमि विक्रय की आवश्यकता नहीं है|स्थानीय ना होने पर भूमि ,आय एवं सम्पत्ति का समायोजन एवं विक्रय कर वर पक्ष के साथ रहे|आने वाली पीढ़ियों में विक्रय,समायोजन तथा परिवार स्थानांतरण की प्रक्रिया उपरोक्तानुसार या सुविधानुसार एक में या अलग-अलग रहकर अपनायी व चलायी जाती रहे| अतः कन्या के दान की नहीं माता-पिता द्वारा सदैव पुत्री के साथ तथा वर -पक्ष के साथ रहने की आवश्यकता है|
ठीक इसी प्रकार वर पक्ष ,भूमि,पद ,आय एवं सम्पत्ति के कन्या पक्ष की तुलना में कम होने की स्थिति में कन्या पक्ष के साथ अपने माता-पिता को लेकर साथ रहे|
नोट-सूत्र 11-12 की सफलता के लिये दोनों पक्षों में एक आवश्यक स्तरीय शिक्षा,सहकारिता, सहयोग,सहनशीलता,समायोजन
(परिवार व्यवस्था में बदलाव)एवं स्थानांतरण की प्रक्रिया का ज्ञान आवश्यक है|

सूत्र13- विवाह पश्‍चात सन्तान होने में लगभग २ वर्षों का समय लगायें|देख लेंक्या दोनों पक्ष अपने साथी से संतुष्ट हैं?अन्यथा पुनः मिलती-जुलती आदतों के साथी की तलाश करें|

सूत्र 14-एक पत्नी व्रती रहें ,अति उत्तम है|किन्ही कारणों
से संभव न हो तो सद् दृष्टि को आधार बनायें|रोग सुरक्षा वर्ण संकरता,एड्स ,मानसिक असंतुलन ,आर्थिक अस्थिरता आदि बिन्दुओं एवं कार्यक्रम पर अवश्य ध्यान दें|

काम ऊर्जा के  उधर्वगमन ,संतुलन ,नियमन एवं आज्ञा चक्र की सक्रियता तथा विकास हेतु आसन,योग, प्राणायाम,ध्यान प्रयोगों तथा ध्यान साहित्य के अध्ययन पर ध्यान दें|
   उभय पक्ष विपरीत सेक्स की सद्सहमति के बिना प्रयास न करें प्रथम-प्रणय निवेदन नारी जाति का अधिकार है|
विवाह पूर्व एड्स परीक्षण(एच0आइ0वी)उभय पक्ष हेतु महत्वपूर्ण है|


सूत्र 15-अपनी परिस्थितियों को ध्यान में रखें |नाम के साथ जाति सूचक एवं धर्म सूचक शब्द न लगाकर मानव,ह्यूमन,इंसानसरनेम किसी भी भाषा में लगाएँ|पाप-पुण्य, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य ,धर्म-अधर्म,धारणीय-आधारणीय,सुनिर्णय-कुनिर्णय में नियमित एवं नियंत्रित तर्कों को स्थान दें,गलत को नहीं|


सूत्र 16- देहान्त शव यात्रा में 30-40 व्यक्ति के लगभग अवश्य जाएँ ताकि स्वयं,समाज,देश व विश्‍व की आर्थिक प्रगति न रुके|अवकाश के क्षणों में आवश्यक आर्थिक मदद व दुःख प्रकट करें|शमशान ,कब्रिस्तान टावर ऑफ पीस से लौटकर स्वयं गुण आभ्यासिक मंत्रों से मौन अग्नि होत्र करें या गाय के घी की खड़ी ज्योति का दीप  जलाकर गृह शुद्धि व आत्म शुद्धि करें|ध्यान दें क्या किसी परिवारविहीनउपेक्षित तथा अनाथ के अंतिम संस्कार में संख्या 20-30 से भी कम तो नहीं हो रही है?
नोट-दीप के घी में  पिसा कपूर मिला दें ताकि पूरी ज्योति ठीक प्रकार जल सके|

सूत्र 17-अविवाहित साधु या साध्वी बनने की अपेक्षा जीवन
 के अंत समय तक विवाहित मानव बने रहना श्रेष्ठ है|लगभग 21 वर्ष तक विवाह अवश्य करें|विवाहित भी पूर्ण धार्मिक,राजनीतिक,सामाजिक,आध्यात्मिक,आर्थिक सेवा कार्यों के योग्य तथा अविवाहित से अधिक कर सकता है|छद्म साधु तो नहीं ही बने। 

सूत्र 18-यदि बनवा सकें तो घर के बाहर एक कमरा या छप्पर अटैच लैट्रिन -बाथरूम अवश्य बनवायें|उस पर मानव धर्म घर जरूर लिखें|किसी आवास रहित व्यक्ति या परिवार को कुछ दिन निःशुल्क रहने की सुविधा दें|जैसे-राहगीर ,विद्यार्थी,बीमार,अपाहिज,अना आदि|इस क्रम में आय के अन्य अतिरिक्त श्रोतों की सुविधानुसार मदद लें|
     अतिरिक्त धन को बैंक में जमा करें या मानव धर्म घर संस्था के नाम से चंदा कर बैंक मे जमा कर धन के ऋण से रचनात्मक पर सेवा कार्यों में सहयोग करें|

सूत्र 19-अपने मतदान का प्रयोग अवश्य करें किन्तु जातीय भावना मुक्त,मददगार स्वभाव के व्यक्ति व सही प्रत्याशी के लिये करें|उसी व्यक्ति को मत दें जो ध्वनि प्रदूषण कम तम व प्रचार पर कमतम खर्च करे|


सूत्र20तन्त्र-ताबीज,भूत-प्रेत,फलितज्योतिष,औघड़,वास्तु, रत्न,झाड़-फूँक,कर्मकाण्ड,पशु-पक्षी नर बलि पर विश्‍वास नहीं बल्कि सुकर्म ही भाग्य निर्माता है|

लाभ 

1)जनसंख्या वृद्धि का यथास्थित रुकना|
2)पुत्री का आजन्म माता- पिता के साथ  रहना|
3)सृष्टि पर्यन्त तक पुत्र-पौत्रों का वंशजों की जानकारी से अवगत होना|
4)दहेज समस्या का अन्त होना|
5)प्रत्येक पीढ़ी में दो परिवारों की सम्पत्ति का संयुक्त होना तथा हर पीढ़ी में धन में गुणात्मक वृद्धि होना|(सूत्र 11-12)
6) विश्व में गरीबी के उन्मूलन का प्राकृतिक विकल्प|
7)नारी देह व्यापार,शोषण व उत्पीड़न का जड़मूल अन्त|
8)विपरीत परिस्थितियों में माँ के नहीं रहने पर बच्चे को नाना-नानी की सम्पूर्ण तथा पिता की आधी सम्पति  का मिलना|
9)भ्रष्टाचार में शत-प्रतिशत की कमी होना|
10) विश्व  की अधिकतम  जनसंख्या को शिक्षित होने का अवसर प्राप्त होना|
11)विकास कार्यों में सरकारों का न्यूनतम खर्च होना|

12) बाल शोषण से बच्चों को मुक्ति मिलना|
13)समाज में अस्वस्थता की स्थिति का खत्म होना|
14) विश्व में देशों के विवाद ,आतंकवाद व युद्ध की संभावनाओं में कमी होना|

15)जाति प्रथा,गोत्र प्रक्रिया ,कुल व्यवस्था तथा रंगभेद के स्तर में पूर्णतः कमी आना|
16)धर्म व जीवन दर्शन के सही तात्पर्य से विश्‍व समाज का अवगत होना|
17)धार्मिक रीति रिवाजों, रुढिवादिता,प्रथाओं,धार्मिक अन्ध विश्‍वासों तथा धर्मवाद से उत्पन्न अस्थिरता व आपसी घृणा में कमी होना|
18) ईश्वरीय सत्ता,देवता तथा पूजा क्या है के बारे में सही एवं संतुलित जानकारी होना|(सूत्र 9)
19)साधु,सन्यासी,नन ,फादर,फकीर,औघड़ ,तान्त्रिक,पुजारी,मौलाना,
ग्रन्थी,पादरी तथा नागा बनने की प्रथा का अन्त होना|इन सबके द्वारा उद्योग,व्यापार,निजी व सरकारी सेवाओं में अपने को संलग्न कर स्वयं,समाज व परिवार के जीवन स्तर को उठाना|साधु-सन्यासी,फकीर,औघड़ ,तान्त्रिक,पुजारी,मौलाना,ग्रन्थी,पादरी,पण्डित,
नागाओं का समाज पर आर्थिक बोझ बने रहने की प्रथा का अन्त होना एवं इनका आर्थिक रूप से स्वयं के पैरों पर खड़े हो संतुलित जीवन-यापन करते हुए निर्देशित प्रक्रिया द्वारा समाज सेवा के कार्यों में अपने को लगाना|जीवन की ऊँचाइयों को छूने तथा इनके एवं इनके बच्चों को ऊंचे पदों पर पहुंचने तथा विवाहित जीवन-यापन करने का इन सबका भी अधिकार है|संतुलित परहित सर्वोत्तम है|
20)अविकसित व विकासशील देशों में प्रत्येक घर के बाहर मानव धर्म घर निर्माण से आवास समस्या का निदान होना|
21)दो परिवारों में विवाहोपरांत संयुक्त परिवार बनने पर अधिक धन की अवस्था में व्यापार व सरकारी सेवाओं में रिक्‍तता होने पर बेरोजगारों को रोजगार के प्रचुर अवसर प्राप्त होना|
22)खर्चीली शादियों में कमी तथा स्थानीय विवाहों में बढ़ोतरी होना|
23)कन्या के विदा नहीं होने तथा सर्वदा साथ रहने से पुत्री तथा माता-पिता का भावनात्मक नुकसान से बचना|
24)मूर्तिपूजा,कब्र पूजा, ग्रह-नक्षत्र पूजा,रात्रि जागरण,धार्मिक झाँकियों ,धार्मिक यात्राओं का समाप्‍त होना एवं निराकार ईश्‍वर के रूप का ज्ञान होना|
25)बच्चे का दादा-दादी,नाना-नानी,माता-पिता आदि लोगों की देख-रेख में संतुलित विकास होना तथा अच्छा नागरिक बनना|
26)आलस्य,चिन्ता,तनाव,सोचने,विपरीत परिस्थितियों से पाचन संस्थान पर विपरीत प्रभाव हो अपच व कब्ज की स्थित छोटे से बड़े सभी आयु के लोगों में असंख्य बीमारियों के रूप में फलित होती हैं|त्रिफला(हरण,बहेड़ा,आँवला का बराबर मात्रा में मिश्रण)व एलोवीरा पाचन संस्थान पर स्वभाविक व निरापद असर कर पचे व अपचे मल को प्राकृतिक रूप से निकालता है तथा रोगों से लड़ने की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढाता,आयुवर्धक तथा शरीर के सभी अवयवों को निरोग रखने में पूर्णतः मदद करता है|

27) अन्‍तरजातीय एवं अन्‍तरधार्मिक विवाहों से विश्‍व में शिशुओं में स्वस्थ जीन के विकास में वृद्धि तथा स्वस्थ संतानों का उत्पन्न होना एवं जाति प्रथा एवं रंगभेद का अंत होना |
28)धनवानों व पूंजीपतियों द्वारा धर्म के सही स्वरूप को जानना तथा धर्मवाद से मुक्‍त होना|मन्दिर,मस्जिद,गिरिजाघरों,धार्मिक स्थलों के बनवाने तथा धार्मिक यात्राओं में धन का व्यय न कर धन बैंक में जमा करना तथा प्राप्‍त ऋण से सूत्र से सम्बंधित रचनात्मक पर सेवा कार्य करना तथा समाज के निर्बल एवं अति निर्बल वर्ग के उत्थान हेतु सहयोग  करना|
29)एक संतानीय व्यवस्था एवं परिवार व्यवस्था में बदलाव के ज्ञान से विश्‍व समाज में नारी भ्रूण हत्या का रुकना|
30)द्वितीय प्रसव में होने वाली अकाल मृत्यु से असंख्य नारियों की सुरक्षा|
31)न्यायालयों में दीवानी एवं अन्य मुकदमों की संख्या में कमी|
32)सभी प्रकार की पथ (मार्ग)दुर्घटनाओं में कमी आना|
33)निचली,पिछड़ी जातियों एवं वर्गों के द्वारा मानव,इंसान,ह्यूमन सरनेम लगने से (हरिजन)निचले,पिछड़े होने से सम्बंधित हीनता बोध का समाप्‍त होना|अन्य सभी जातियों के द्वारा इसी सरनेम (जाति सूचक शब्द)के स्वीकार से जाति,धर्म,सम्प्रदाय की भावना में कमी आना एवं आपसी ईर्ष्या,वैमनस्य का समाप्त होना|
तथा ऊँची जातियों द्वारा निचली पिछड़ी जातियों को हीनता का बोध कराये जाने के पाप से मुक्ति मिलना|
34)मान,सम्मान एवं गर्व से कहना और बोध होना कि हम सभी इन्सान हैं|
35)सूत्र(निर्णय)11-12 के लागू करने एवं समझने से पीड़ा  तथा छल-बल से धन अर्जित करने के भाव का तिरोहित होना|
36)खपरैल या टीन शेड के प्रयोग से विश्‍व में अग्निकांडों में कमी आना तथा इंसानों का आग की भेंट नहीं चढ़ना एवं अकाल मृत्यु से सुरक्षा|
37)धन कि वृद्धि व  सम्रद्धिता से हरिजन वर्ग कि मैला उठाने तथा समाज द्वारा उठवाने कि प्रथा का समाप्‍त होना|
38)विदेशी मुद्रा के लालच में प्रतिभा पलायन का रुकना|
39)जनसंख्या नियन्त्रण से मूल्य वृद्धि(महंगाई) 
में कमी आना तथा मुद्रास्फीति एवं देशों की जी०डी०पी का सुधरना |
40)सूत्र से तक जीवन में प्रयोग तथा प्राणायाम ,कपालभाति एवं अनुलोम विलोम द्वारा मानव समाज का रोगों से मुक्त होना तथा स्वस्थ लोगों का सभी प्रकार के रोगों से बचाव एवं सभी प्रकार के नशों का छोड़ पाना संभव होना|
41)किन्नर बच्चे को किन्नरों के समूह में न दे कर,बच्चे को माता-पिता द्वारा पालना व समाज का ज़िम्मेदार नागरिक बनाने का प्रयास करना | इनके व्यापार,सरकारी व राजनीतिक पदों पर पहुँचने से समाज का हित होना | विशेषज्ञों के परामर्श और सलाह से किन्नरों की स्थिति और सम्मान को सुरक्षित किये जाने का प्रयास किया जाना चाहिए | किन्नरों की समाज में परवाह करना बड़ा पुण्य है | प्रयास से ही सुधार का प्रतिशत निकल के समाज के सामने आएगा |
      किन्नरों के वंश नहीं चलने की स्थिति में इनके विभिन्न सामाजिक पदों पर रहने से भ्रष्टाचार का अनुपात न्यून होना व इनका सामाजिक स्तर उठना |
     किन्नर बच्चे अपने माता-पिता की सेवा करें| किसी अनाथ को गोद लेकर उसका पालन व विवाह कर सेवाएं ले तथा परिवार भी आगे 
बढ़े |इससे  बुढ़ापे में गोद लिए  बच्चे का भी लाभ मिलेगा |
      छद्म  साधू , सन्यासी, किन्नर परजीवी होने के स्थान पर श्रमजीवी व श्रम साध्य  बनें । २४ घंटों में  सन्यास ,योग,प्राणायाम व ध्यान लगभग एक घंटे या आवश्यकता अनुसार बाकी  समय सँसार के कार्य करें। 
42)मानव धर्म के सूत्र ११-१२ के अधिकतम प्रतिशत में लागू होने के बाद सरकारों को मिनिमम आठ घंटे कार्य और सेवा देने के नियम बनाने होंगे | ताकि धन की पर्याप्तता सेवा और जनहित के कार्यों में बाधा नहीं बन सके|
43)परिवारों की और देशों की आर्थिक स्तिथि मज़बूत होने के बाद गरीब देशों के मज़दूरों को अमीर देशों में काम के अवसर प्राप्त होने की सुविधा|
44)हर पीढ़ी में दो सम्प्पतियों के एक होने से आने वाली पीढ़ी पर पुरानी पीढ़ी के देख रेख में धन के अर्चन हेतु अतिरिक्त श्रम और तनाव से मुक्ति |
45)ॐ, ओंकार एवं अल्लाह -हू का ध्वनि प्रदूषण रहित जप व उच्चारण से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ना एवं स्वास्थ्य में सुधार होना| 



उपसंहार 

जीवन-दर्शन,स्वर्ग-नरक,तत्व ज्ञान,मोक्ष,कैवल्य ,धर्म-अधर्म,मुक्तावस्था, निर्वाण,संबुद्धत्व,आत्मा-परमात्मा आदि बिन्दुओं पर विचार करती आई मानवता यदि मानव के भौतिक तथा आध्यात्मिक संतुलन(भौतिक तथा आध्यात्मिक)उद्धार पर पुनर्विचार करें तो सुनिर्णय के (धर्म)के संतुलन बिन्दु की ही आवश्यकता होगी|जीवन में सात्विक दृष्टिकोण तथा धर्म (सुनिर्णय)ही व्यक्ति को प्रति-पल दुष्कर्मों से विरत कर सत्कर्मों में प्रवृत्त   करते हैं|एक संतानीय व्यवस्था,कन्या को पर ग्रह न भेजना,लड़का-लड़की तथा उनके माता-पिता का साथ रहना तथा हर पीढ़ी में सम्पत्ति के संयुक्त होने की प्रक्रिया शारीरिक ,कामिक,आर्थिक तथा सामाजिक असामाजिकता,असंतुलन एवं दुष्कर्मों से मानव सभ्यता की रक्षा करती है|व्यक्ति के स्वयं के शोषित होने तथा समस्त प्रकार के शोषण को करने से रोकती  है|वर्तमान जीवन में मोक्ष,कैवल्य,मुक्तावस्था,स्वर्ग का भोग,संबुद्धत्व तथा निर्वाण ज्ञान-योग से ही संभव है|
आर्थिक स्वतंत्रता प्रदानकर सत्कर्मों में प्रवृत्त रखने वाली परिस्थितियाँ सूत्र 11-12 पहली सीढ़ी है|शोषण एवं पाप से रहित पवित्र जीवन आत्मशांति में सहायक हो लोक हि मजबूत करता है|सरल एक सन्तानीय व्यवस्था तथा संभव एवं सरलतम प्रत्येक पीढ़ी में कन्या एवं लड़के की योग्यतानुसार परिवारों का स्थानांतरण,लड़का-लड़की तथा उनके माता-पिता का साथ रहना एवं हर पीढ़ी में सम्पत्ति  के संयुक्त होने की प्रक्रिया प्रत्येक पीढ़ी में धन में गुणात्मक वृद्धि होने के साथ-साथ संतुलित कर्म(परिश्रम)एवं संतुलित भोग के सिद्धान्त को प्रसस्त करती है|अर्थ या अन्य निमित्त एक के द्वारा दूसरे की स्वतंत्रता पर शारीरिक,मानसिक या किसी भी प्रकार का आघात या शोषण नहीं ही होना चाहिये|
असंख्य लोगों के लिये उनकी परिस्थितियों के अनुसार असंख्य(धर्मों)निर्णयों की अवश्यकता है|जिसके हेतु प्रत्येक जन शिक्षित एवं विकसित मस्तिष्क होना अवश्यक है ताकि निर्णय (धर्म)स्वकल्याण के साथ पर- पीड़ादायी न हो और विश्‍व समाज के लिये सुनिर्णय सिद्ध हो सके|
    सत्य अपरिवर्तनीय है किन्तु बदलती परिस्थितियों में धर्म भी परिवर्तनीय हो सत्‍य का स्थान लेता है|
    धरती पर ही और यह धरा स्वर्ग है जब तक यह अनुभव प्रत्येक मानव का अनुभव न बन जाये|संतुलित परहित और सहकारिता से सम्पूर्ण पृथ्वी की जनसंख्या जब तक धरती पर मुक्‍ति के रहस्य को न समझ ले ,तब तक मृत्योपरान्त किसी भी लोक की कल्पना करना व्यर्थ है|अतः सार्थक एवं सकारात्मक जीवन वादी दृष्टिकोण से पूर्ण सुनिर्णय (सुधर्म)का संश्‍लेशण ही श्रेयस्कर होगा ताकि मानवता जीवन की मूलभूत अवश्यकता धन की संतुलित पूर्णता से रोटी ,कपड़ा,मकान के अतिरिक्त सृष्टि पर्यन्त तक वंश के चलने,स्वास्थ्य,संतुलित काम(सेक्स), आवश्यक शिक्षा एवं ज्ञान ,गुणों के अभ्यास के साथ ईश्‍वर भक्ति,संतुलित परहित ,संतुलित निष्काम परिश्रम(कर्म),धरती पर मुक्‍तावस्था तथा परलोक में मोक्ष के रहस्य को समझ प्रतिक्षण सुनिर्णय(धर्म)के सन्तुलित बिन्दु को प्राप्त कर सके|
वायु, ध्वनि,विद्युत प्रवाह,लोहे में चुम्बक के आभास की तरह चेतन तत्व भी आभासिक है | अनन्त काल से अनन्त काल तक विचारणीय रहने वाला यह प्रश्‍न दार्शनिक एवं वैज्ञानिक खोज का विषय सदैव हे रहेगा| दृश्य एवं अदृश्य जगत में विचार तथा आत्म-तत्व अनन्त काल तक सुरक्षित रहते हैं|
    अनन्त लोकों में से सर्वत्र परम चेतना(परमात्मा)ही व्याप्त है|मरणोपरांत भी शरीर में परम चेतना व्याप्‍त रहती है | व्याप्‍त आत्म-तत्व (चेतन तत्व)परम चेतना का ही अंश है|
    "शरीर की कोई ईकाई अपना कार्य जरा(बुढ़ापा)वश बंद करती है|"
    स्वस्थ परिस्थितियों के प्रभाव एवं गुणों के अभ्यास से सात्विक हुआ मानवीय शरीर मस्तिष्क तथा उसमें व्याप्‍त सात्विक हो गयी चेतना मरणोपरान्त आध्यात्मिक शरीर के पुनर्जन्म पर मानवता का कल्याण करता है या फिर ईश्‍वर (परम चेतना)में लीन हो महानिर्वाण को प्राप्‍त होता है|

विचार

राष्ट्रों तथा सामाजिक संस्थाओं एवं सरकारी और व्यक्तिगत स्तर के प्रयासों में ग्रामों-वार्डों,पुरवोंमौजों,घरों,खोखों,दुकानों, फैक्ट्रियों,
कार्यालयों शिक्षण संस्थानों,कचहरियों,सार्वजनिक स्थानों, डाक टिकटों,स्टाम्पों,सरकारी कार्यालय ,प्रत्येक रसीदों,पत्रों,
सिनेमा स्लाइडों,टी०वी० हेड्स,निजी प्रतिष्ठानों की रसीदों,कॉपियों-पुस्तकों,प्रश्नपत्रों, उत्तर पुस्तिकाओं,नोटों,सिक्कों,कैलेण्डरों,उपभोक्ता समस्त वस्तुओं,वाहनों,सिनेमा टिकटों,रेलवे टिकटों,एवं अन्य आदि पर "एक सन्तान सुखी इंसान,लड़का-लड़की एक समान"एक कोने पर लिखने की व्यवस्था तथा प्लास्टिक एवं दफ्ती के स्टीकरों के अतिरिक्‍त,वाल पेंटिंग्स ,प्रेरक-कार्यक्रमों,रैली,प्रचार माध्यमों द्वारा सद् प्रयासों का किया जाना विश्‍व के प्रत्येक नर-नारी का कर्तव्य है|

उद्‌देश्य

1)गरीबी उन्मूलन के साथ सम्पूर्ण विश्‍व में बच्चों एवं लड़के-लड़कियों का बचपन सुरक्षित हो|
2)नारी भ्रूण हत्या,नारी उत्पीड़न तथा जगत में नारी के विपरीत व्याप्‍त अस्वस्थ परंपराओं,आस्थाओं, विश्‍वासों,दृष्टिकोणों,षड्यन्त्रों से 
शोषित नारी , मुक्ति ,स्वतन्त्रता,सम्मान,स्वास्थ,निर्भयता,शिक्षा,संतुलित काम(सेक्स)और जीवन की अन्य संभावनाओं को प्राप्‍त कर सकें|
प्रश्‍न :एक ही सन्तान के कारण अकाल मृत्यु की स्थिति में अभिभावक क्या करें?
उत्तर:ऋतु धर्म के क्रमशः की अवस्था में पुनः सन्तान कर सकते हैं|वृद्धावस्था में ऋतुधर्म के अवसान की स्थिति में अना को गोद लें|
संदेश:परिवार व्यवस्था में बदलाव
सूत्र 11-12
"
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः|सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्||"

"सभी सुखी हों,सभी निरोगी हों,
सभी एक दूसरे को अपना भाई-बन्धु जाने,
किसी को किसी प्रकार का दुःख न हो|"
"जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा उसी के दुःख का नाम तो मोह है|पाले हुये कर्तव्य और निपटाये हुये कामों का क्या मोह!मोह तो उन अनाथों को छोड़ जाने में है ,जिनके साथ हम अपना कर्त्तव्य न निभा सके,उन अधूरे मंसूबों में हैं जिन्हें हम न पूरा कर सके|"

-मुंशी प्रेमचन्द
(गोदान से)
"सीक्रेट डाक्‍टराइन्स की लेखिका ब्लावतस्की के जिक्र में कहा जाता है की वह जब दुनिया भर की यात्रा करती रही,एक थैला उसके पास हमेशा बना रहा,जिसमें कई तरह के फूलों के बीज पड़े रहते थे|वह जहां भी कहीं अच्छी जमीन देखती,फूलों के बीज छिड़क देती थी|कई बार लोगों ने कहा कि आप तो फिर कभी इस राह से नहीं गुजरेंगी,यह बीज जब खिल जाएंगे,आप कभी नहीं देख पाएंगी।........उस वक्त ब्लावत्सकी हँस देती थी ,कहती-मैं नहीं देख पाऊँगी,लेकिन लोग देखेंगे,यह फूल लोगों के लिये खिलेंगे|"
"आत्म हत्या समस्या का समाधान नहीं है|स्लेट से सवाल मिटाकर उसे कैसे किया जा सकता है|"
स्वामी दयानंद सरस्वती



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